बादल
बादल

बादल

( Badal )
***

ओ रे !
काले काले बादल,
बरस जा अब,
सब हो गए घायल !
धरती अंबर आग उगल रहे,
ऊष्मा से ग्लेशियर पिघल रहे!
सूख गए हैं खेतों के मेड़,
बरसो जम कर-
अब करो न देर ।
ओ रे !
काले काले बादल…
बरसो …
हर्षे बगिया,
हर्षे मुनिया।
हर्षे समस्त तन मन,
हर्षें हम भी नित्य दिन;
बरसो रिमझिम रिमझिम।
खेतों में आए हरियाली,
गाएं मल्हार बजाएं ताली।
चिड़ियां चहकें ,
प्यासी न भटकें।
नाचे मन मेरे हो मयूर
बरस जा बादल,
रहो न अब दूर ।
तेरी ओर ही देखें-
दुनिया भर के किसान,
तू ही हो अन्नदाताओं की मुस्कान।
चहक महक मुस्कान न छीनों,
बरसने को अब दिन न गिनो।
झट आकर बरस जा,
हम पर अब तू तरस खा।
तरस खा धरती मां पर,
जल बिन वह सूख चुकी है,
मां की ममता लुट चुकी है।
बरस कर ममता लौटा दो,
धरती मां को भी हंसा दो।
ओ रे !
काले काले बादल,
बरस जा सब हो गये हैं घायल!
झूमकर बरसो ऐसे –
हो जाएं सब तेरे कायल ।

 

?

नवाब मंजूर

लेखक-मो.मंजूर आलम उर्फ नवाब मंजूर

सलेमपुर, छपरा, बिहार ।

यह भी पढ़ें :

एक अजीब लड़की | Poem ek ajeeb ladki

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here