बात बनता है कभी गुमान में क्या

बात बनता है कभी गुमान में क्या

बात बनता है कभी गुमान में क्या

 

बात बनता है कभी गुमान में क्या

कभी इन्तिज़ार होती है ज़िन्दान में क्या

 

गैरों के बात खुद केह देते हो

ऐसा होता है भला सुख़न में क्या

 

जाते जाते इतनी मेहेरबानी क्यों

टुटा दिल ही दोगी दान में क्या

 

कुछ नहीं में और उसके सिवा

अच्छा होगा अब जहान में क्या

 

घर चल रहा है मेरे सुख़न से

अब यह बंद दूकान में क्या

 

सुभो शाम चैन नहीं है मुझे ही

चलता है ऐसा मेरे मकान में क्या

 

छाले नहीं है ‘अनंत’ के जुबान में क्या

कुछ रहता नहीं है आपके ध्यान में क्या

 

 

❣️

शायर: स्वामी ध्यान अनंता

( चितवन, नेपाल )

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