बिल्कुल फींके-फींके हैं ईद के लम्हात भी
किस हद तक बदल गए हैं, गांव के हालात भी,
बिल्कुल फींके-फींके हैं, ईद के लम्हात भी।
कल तक जो मेरे चरणों को छूते रहते थे लेकिन
आज नहीं करते हैं वो सीधे मुंह से बात भी।
सोचे तो कोई जाने भी, कितनी तन्हा लगती है,
एक मां के ना होने से, खुशियों की बारात भी।
चिलचिलाती धूप ने जो छीन लिया सारा सुकून,
सहमें सहमें से हो गए हैं, बारिश के असरात भी।
कैसे करोगे वैल्यूएशन, सूट फोर रिकवरी की,
‘ज़फ़र’, बंद कोठरी में हैं दिल के जज़्बात भी।
ज़फ़रुद्दीन ज़फ़र
एफ-413, कड़कड़डूमा कोर्ट,
दिल्ली -32
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Bahut khub