बातें
बातें
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करो सदा पक्की
सच्ची और अच्छी!
वरना…
ये दुनिया नहीं है बच्ची,
सब है समझती।
समझाओ ना जबरदस्ती!
बातें…
ओछी खोखली और झूठी
नहीं हैं टिकतीं।
जगह जगह करा देतीं हैं
बेइज्जती!
सच्चाई छुप नहीं सकती,
बेवक्त है आ धमकती!
होश फाख्ता कर देती है,
सिर झुका देती है।
तेज़ ही उसकी इतनी होती है!
पल में घोर अंधेरा चीर रौशनी है लाती,
ऐसी है सच की हस्ती;
खाली हो जाती झूठ की बस्ती।
मान लो ‘मंजूर’ की बात,
खाली न रहेगा कभी तेरा हाथ;
देना सदा सच का ही साथ।
मिलेगा तुझे सदा अच्छे लोगों का साथ!
सूरज सा चमकोगे
और निकलोगे बनके महताब।
?
लेखक-मो.मंजूर आलम उर्फ नवाब मंजूर
सलेमपुर, छपरा, बिहार ।
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