Bacchon ki kavita

बहादुर चिड़िया | Bacchon ki kavita

बहादुर चिड़िया

( Bahadur chidiya ) 

 

 

एक बार लगी जंगल मे आग,

भाग गये पशु-पक्षी और बाघ।

बैठी थी अकेंली चिड़िया उस पेड़,

छोड़कर नही जा रहीं थी वह पेड़।।

 

चिल्ला रहा था आग-आग बंदर,

बोला छोड़कर चलो अब जंगल।

बोली चिड़िया नही चलूंगी में आज,

में तो रहूंगी यही इस पेड़ के पास।।

 

इतने दिन खाऐ थें मेंने इसके फल,

गन्दे भी किये थें इसके पत्ते व फल।

आग में जलना पड़ा तो जल जाऊॅंगी,

पर पेड़ छोड़कर कही नही जाऊॅंगी।।

 

तब आया दिमाग़ में उसके उपाय,

फुर्र से उड़कर पानी चोंच भर लाई।

बार-बार लेकर आई पानी भर चोंच,

आग पर लाकर छोड़ती देखो सोच।।

 

सब कुछ देख रहा था यह बंदर,

चिड़ियां को समझा रहा था वो बंदर।

बोला ऐसी आग में मरोगी क्या,

तुमसे यह आग कोई बुझेगी क्या।।

 

बोलीं करूॅंगी में आज यही काम,

इसमें चली जाये चाहें हमारी जान।

जब भी जंगल में लगी है ऐसी आग,

इतिहास लिखा है किसी ने ख़ास।।

 

आज मैं नही हूं भागने वालों में,

मैं तो हूं आग बुझाने वालों में।

लिखी कविता गणपत ने फिर आज,

हमको है आज चिड़िया पर नाज।।

 

रचनाकार : गणपत लाल उदय
अजमेर ( राजस्थान )

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