बड़ा दिलकश मैं मंजर देखती हूँ
बड़ा दिलकश मैं मंजर देखती हूँ
बड़ा दिलकश मैं मंजर देखती हूँ
तेरी आँखों में सागर देखती हूँ
हुई मा’दूम है इंसानियत अब
हर इक इंसान पत्थर देखती हूँ
पता वुसअत न गहराई है जिसकी
वो सहरा दिल के अंदर देखती हूँ
हुनर ज़िंदा रहेगा है ये तस्कीं
मैं हर बच्चे में आज़र देखती हूँ
न ग़ालिब और कोई मीर जैसा
यहाँ जब-जब सुख़नवर देखती हूँ
तेरी तस्कीन की ख़ातिर मैं हमदम
तेरे शे’रों में ढलकर देखती हूँ
मिली रहमत ख़ुदा की है बना वो
मुकद्दर का सिकंदर देखती हूँ
नहीं चाहूँ मैं हीरे और जवाहर
हसीं बस तुमसा दिलबर देखती हूँ
झुका दे तू फ़लक को भी ज़मी पर
मैं तुझ में इक मुज़फ़्फ़र देखती हूँ
हर इक पत्थर को मीना सर झुकाऊं
मैं हर पत्थर में शंकर देखती हूं
कवियत्री: मीना भट्ट सिद्धार्थ
( जबलपुर )
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