![Inside the palace, the kingship was challenged, digital painting.](https://thesahitya.com/wp-content/uploads/2024/01/Badle-ki-Aag-696x398.jpg)
बदले की आग
( Badle ki aag )
बदले की आग बना देती है अंधा
और को जलाने की खातिर
हृदय में धधकती ज्वाला
स्वयं के अस्तित्व को भी
बदल देती है राख में
वक्त पर क्रोधित होना भी जरूरी है
किंतु समाधान के रास्ते भी कभी बंद नहीं होते
विकल्प ढूंढना जरूरी है
महाभारत ही होना विकल्प नहीं था
शेष थे पर्याय के तमाम रास्ते
स्वार्थ की महत्वाकांक्षाओं ने ही
वंश को खत्म कर दिया
बदल ही जाते हैं हालात वक्त के साथ
छोड़ जाते हैं पीछे राख या पश्चताप
कई पीढ़ियां गुजर जाती हैं
वर्तमान को संभालते संभालते
शकुनी भी कहा नहीं होते
गलतियां तो धर्मराज से भी हो जाती हैं
सोने का मृग भी नहीं होता
परिस्थितियों वैसी बन जाती हैं
समझदारी जरूरी है संकट में
संभावनाएं रहती हैं जिंदा हरदम
( मुंबई )