पापा पढ़ने जाऊंगी
( Papa padhne jaungi )
गांव में खुलल आंगनबाड़ी
मैं पापा पढ़ने जाऊंगी
तुम पढ़ें नही तो क्या हुआ?
मैं पढ़कर तुम्हें पढ़ाऊंगी,
सीख हिन्द की हिंदी भाषा
हिन्दुस्तानी कहलाऊंगी
अरूणिमा सी बन कर बेटी
पापा की नाम बढ़ाऊंगी ,
बेटा से बढ़कर बेटी है
यह सिद्ध कर दिखलाऊंगी
मैं दूर दूर तक नाप धरा
फिर गगन चूम कर आऊंगी ,
छीनो न अधिकार मेरा मां
ना दुनिया से लड़ पाऊंगी
बन अनपढ़ जिल्लत की जीवन
ना शोषण को सह पाऊंगी ,
अब जाने दो स्कूल मुझे मां
खुद ही तकदीर बनाऊंगी
शिक्षा से इच्छा पापा के
मैं तब पूरा कर पाऊंगी।
रचनाकार –रामबृक्ष बहादुरपुरी
( अम्बेडकरनगर )