गंगा का बनारस भाग-३ | Banaras
गंगा का बनारस भाग-३
( Ganga ka Banaras )
मौत न पिए, तेरी साँसें,
के पहले तू जा बनारस।
हैं धँसे शूल जो तेरे बदन,
जाके निकाल उसे बनारस।
मत बढ़ा तू दिल का छाला,
देगा आशीष वही बनारस।
मैली कर न अपनी साँसें,
जाके धो ले शहर बनारस।
उड़ जाएगा पिंजड़े से बुलबुल,
दर्प आँख से उड़ा बनारस।
निकल वासना के आंगन से,
आन-बान है शान बनारस।
जीवन-मृत्यु साथ वहाँ चलती,
है उमंग से भरा बनारस।
एक जीवन में नहीं समझोगे,
गागाभट्ट का शहर बनारस।
आध्यात्म की है प्रयोगशाला,
है सुंदर संवाद बनारस।
बनारस केवल शहर नहीं,
जीवन के है बाद बनारस।
कर सत्कर्म कहीं से भी तू,
तेरा समझ वहीं बनारस।
अच्छे-बुरे कहाँ नहीं होते,
पर ले अंतिम साँस बनारस।
रोना नहीं, सिखाता हँसना,
गायिकी से भरा बनारस।
गायन-वाद्य दोनों विधा का,
पहले से है केन्द्र बनारस।
कबीरचौरा की बात जुदा है,
संगीत का है घड़ा बनारस।
ख्याल-ठुमरी और दादरा,
खा ले मीठापान बनारस।
शहनाई,बाँसुरी सारंगी,
संगीत का है जान बनारस।
नहीं भूलेगी सिद्धेश्वरी बाई,
ठुमरी का विधान बनारस।
कमी खोजोगे मिल जाएगी,
पर है वो अद्वितीय बनारस।
सँकरी गलियाँ भले हैं उसकी,
महक रहा है शहर बनारस।
हजार किस्म के होते आँसू,
दर्द सभी का बंटे बनारस।
वैभवशाली संस्कृति उसकी,
भूखा नहीं सुलाए बनारस।
सारनाथ है ज्ञान स्थली,
सब धर्मो का केन्द्र बनारस।
करुणा,क्षमा-त्याग,तपस्या,
मौत-मोक्ष की जगह बनारस।
रामकेश एम.यादव (रायल्टी प्राप्त कवि व लेखक), मुंबई