चंचल चोर

( Chanchal chor ) 

 

श्याम सुंदर, मुरली मनोहर, तू बड़ा चंचल चोर है।
कटि कारी करधन है पड़ी, शीर्ष उसके पंखमोर है।

टोली में हर घर में घुसे, माखन, दही खाता चुरा,
मटकी में कुछ बचता नही, चारो तरफ ये शोर है।।

मुरली मधुर मदमस्त बाजे, कालिंदी के तीर पर।
आभा अद्भुत मुख पर है, छाई घटा घनघोर है।

चाल चलता है चतुर, रीझती है राधा प्रिये,,,
दिल में मेरे रह रहे जो, वो कान्हा चितचोर है।।

पानी भरने पनघट को, जाती है जब जब गोपियां,
पीछे पीछे नटखट जाता, चलता नहीं कोई जोर है।

मारता कंकड़ घड़े पर, मटकी मैया ये फोड़ता,
पकड़ो पकड़ो कान्ह को, यमुना तट पर शोर है।

रीझ में जब गोपियां, लड़ने को जाती कृष्ण से,
पास बुलाए प्रेम से, कलइया पकड़ के मरोड़ दे।

वस्त्र चुराने को जा बैठा, नंद कदम की डार पे,
चीर चुराकर भाग जाता, लाल तेरा चीर चोर है।

लगी रिझाने कृष्ण को, मुराली छिपाई राधा ने,
बांके बिहारी व्याकुल हुए, क्या मेरी राधे चोर है??

लौटा दो, प्राणप्रिये! मेरी तरह, ये भी तुम्हारी दास है।
ध्वनि हृदय से जिह्वा तक, होठों से लग रटती, यहीं तो राधा वास

 

© प्रीति विश्वकर्मा ‘वर्तिका

प्रतापगढ़, ( उत्तरप्रदेश )

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