बंदर मामा | Poem bandar mama
बंदर मामा
( Bandar mama )
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बंदर मामा बंदर मामा,
कब तक पहनोगे पैजामा?
बचपन से पढ़ते आए हैं,
रट रट किस्से सुनाए है।
अब तुम भी बदलो अपना जामा,
बंदर मामा बंदर मामा।
जिंस टाॅप सिलवाओ,
एक मोबाइल खरीद लाओ।
इंटरनेट कनेक्शन पाकर-
दिन-रात उसे चलाओ,
अब झट से तुम भी ,
स्मार्ट बन जाओ।
ठुमक ठुमक ससुराल न जाओ,
शो रूम से एक कार उठाओ।
फर्राटा मारते ससुराल तू जाना,
सूट बूट में सबको चौंकाना।
सालियों को भी घुमाओ फिराना,
एशो-आराम का जीवन बिताना।
पेड़ पेड़ पर ना अब उछलो,
राजनीति का स्वाद तू चख लो।
कलाबाजियां दिखलाकर सीखो,
जनता को बहलाना-
उछल उछल कर उन्हें तुम खूब रिझाना।
चुनाव आए तो खड़े हो जाना,
आपस में जनता को लड़ाना।
कुछ इस तरह चुनाव जीत जाना,
फिर अपनी पूंछ घुमाकर-
जनता को नाच नचाना;
खुद एसी में बैठ हलवा खाना।
लेखक-मो.मंजूर आलम उर्फ नवाब मंजूर
सलेमपुर, छपरा, बिहार ।
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