बरतरी | Bartari
बरतरी
( Bartari )
क़दमों को संभाल कर चलो भटक जाएंगे,
सर झुकाए रखो चुनरी सरक जाएंगे,
हम बेटियों को ही यह नसीहतें करते जाएंगे,
बेटों को कहते नहीं कि निगाहों से भटक जाएंगे,
कपड़ों पर तो कभी श्रृंगार पर टिप्पणी करेंगे,
क्यों उनके ही जज़्बात फांसी पर लटक जाएंगे,
लड़के क्यों नहीं नज़रें अपनी झुकाकर चलते,
बरतरी के गुमान में खुद हि गर्क हो जाएंगे,
क्यों बेटियों की साँसों पे ही पहरे लगाए जाएंगे,
मुस्कुराहटें नोचकर उनके होंठों को सिल जाएंगे!
आश हम्द
पटना ( बिहार )