दिनेश अक्सर समाज में व्याप्त कुरीतियों को देखकर उसका मन व्यथित रहता था। वह अक्सर इस प्रकार के समाज में फैले पाखंड को सुनता था तो उसकी तह तक जाने का प्रयास करता था।

एक बार उसने सुना कि कोई भविष्य वक्ता है। जो लोगों का भविष्य बताता है। फिर क्या था वह भविष्य वक्ता से मिलने चल दिया।

उसे पता चला कि भविष्य वक्ता मंगल और शुक्रवार के दिन बताता है और जिसका दाव लग जाता है उसे एक के बदले ₹100 मिलता है । उसके यहां सैकड़ो आदमियों का मेला लगा रहता था। मेवे मिठाई फलों का ढेर लगा रहता था । जिसका भी सट्टा लग जाता वह प्रसन्न होकर उसे निहाल कर देता था।

वह अपनी वाक्पटुता के कारण भविष्य वक्ता का नजदीकी बन गया। वह उनके इतना नजदीक बन गया कि भविष्य वक्ता को लगा कि यदि यह हमारा चेला बन जाए तो मेरी आमदनी दुगनी हो सकती है।
जिसके कारण उसने दिनेश को भारी प्रलोभन भी देना चाहा।

दिनेश का उद्देश्य कोई यश या धन कमाना नहीं था। वह बस इस भविष्यवाणी का वास्तविकता जानना चाहता था। इसलिए उसने उस भविष्य वक्ता से कहा कि उसे कुछ समय तक और रुकने का मौका दें और विचार करने का अवसर दे तो ही कुछ निश्चित उत्तर दे सकेगा। इस बात पर वह भविष्य वक्ता सहमत हो गया।

दिनेश का नित्य का कार्यक्रम उस भविष्य वक्ता के नजदीक बैठना था। सारा दिन होने वाली चर्चा को वह बहुत सूक्ष्मता के साथ देखता था। कभी-कभी वह भविष्य वक्ता को प्रसन्न करने के लिए उसके गुणगान कर दिया करता था।

अंत में उसने निष्कर्ष निकाला कि इसके पास कोई सिद्धि नहीं है । उसने देखा कि यदि 500 दर्शन आए हुए हैं तो यदि अलग-अलग 500 नंबर बता दिया जाए तो कम से कम 30- 35 लोगों का नंबर जरूर लग जाता है । इस प्रकार से 30-35 लोग उसके मुरीद बन जाते हैं।

अब उन 30 -35 लोगों का ढोल चारों ओर उसके आदमी पीटा करते हैं। वास्तविक रूप से ३०- ३५ लोगों को मिलता है। लेकिन कभी-कभी तो हजारों की संख्या में बता दिया करते हैं।

ऐसा ही अधिकांश दूसरों के बारे में बताने वाले बाबा आदि किया करते हैं। इन लोगों की पूरी सेटिंग होती है । यही कारण है कि ऐसे लोग केवल अपने दरबार में ही बताया करते हैं । अन्य जगह जाते हैं भी हैं तो पूरी सेटिंग के साथ जाते हैं । जिसके कारण कोई उनकी पोल ना खोल सके।

इस प्रकार से देखा गया है कि तिल का ताड़ बनाने वाले गप्पे पूरे समाज में फैला दी जाती है। जिससे ऐसे बाबाओ की मान्यता दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती जाती है । दूर-दूर से लोग अपना दुखड़ा लेकर ऐसे बाबाओ के चक्कर लगाने लगते हैं।।

आजकल ऐसे बाबाओ की संख्या बहुत बढ़ गई है। जिनका उद्देश्य होता है समाज को पाखंड एवं अंधविश्वास में डुबोकर अपना उल्लू सीधा करना।

जिनका कार्य नहीं होता है उन्हें भाग्य का फेर , बुरे दिन, सेवा पूजा की कमी आदि अनेकों कारण गिना दिया जाता है।
समाज में ऐसे अंधविश्वास एवं पाखंड फैलाने वाले लोग मालामाल हो जाते हैं और जनता लुट पिट कर बर्बाद हो जाती है।
उस भविष्य बताने वाला बाबा की नौटंकी देखकर दिनेश का मन तिलमिलाने लगा।

उसने देखा कि किस प्रकार से मिथ्या भ्रम और पाखंड समाज में यह लोगो को वेतन भोगी एजेंट द्वारा फैलाते रहते हैं।
वह समाज से ऐसे पाखंडों को दूर करने का संकल्प लेकर चला आया। उसने संकल्प ले लिया कि ऐसे लोगों की जड़े वह हिला कर रख देगा।

वर्तमान समय में अंधविश्वास एवं पाखंड का बोलबाला चारों तरफ से फैला हुआ है। जो जितनी अधिक मात्रा में समाज को अंधविश्वास के गर्त में डालता है। वह उतना ही सिद्ध माना जाता है। स्त्रियां ऐसे पाखंडों में ज्यादा फंसती हैं। अधिकांश देखा जाता है कि ऐसे बाबाओ के पास पुरुष नाम मात्र के होते हैं और स्त्रियां ही भीड़ लगाए रहती हैं।

समाज में पाखंड और अंधविश्वास को जिंदा रखने में स्त्रियों का बहुत बड़ा हाथ है। जिसका प्रभाव उनके बच्चों पर भी उसी प्रकार से पड़ता है। क्योंकि बचपन में बच्चे अधिकांशतः मां के ही संपर्क में रहा करते हैं। बचपन में पड़े प्रभाव अमिट होते हैं जिसे मिटाना बड़ा कठिन हो जाता है।

ऐसे बच्चे बड़े होने पर भी उनके मन से वह संस्कार नहीं निकल पाता है। यही कारण है उनमें वैज्ञानिक प्रतिभा नहीं विकसित हो पाती है। क्योंकि धर्म और विज्ञान की मान्यताएं अलग-अलग हैं।

धर्म कहता है कि बिना किसी टीका टिप्पणी के मानो। यदि टीका टिप्पणी किया तो उसे अधर्मी नास्तिक कहने लगते हैं। वही विज्ञान की मान्यता है कि पहले जान फिर मानो। प्राथमिक कक्षाओं में बच्चों को सिखाया जाता है कि विज्ञान आओ करके सीखें। लेकिन धार्मिक मान्यताएं इससे उलट होती हैं जिसके कारण बच्चा अक्सर असमंजस में पड़ जाता है।

दिनेश बड़ा सौभाग्यशाली था कि उसके माता-पिता बड़े खुले विचारों के थे । उसके हर तर्कों का वह जवाब दिया करते थे। जिसके कारण उसकी मन अक्सर चीजों की वास्तविकता तक जानने का प्रयास किया करता था। यही कारण था कि वह ऐसे पाखंड एवं अंधविश्वासों से दूर रहा।

योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )

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