बस आज बस | Bas Aaj
बस आज बस
( Bas aaj bas )
जद्दोजहद दुश्वारियां कुछ कश्मकश बस आज बस
मैं गुनगुनाना चाहती बजने दो कोई साज़ बस।
वो फ़िक्र रंजो गम ज़फा तन्हाइयों की बात को
तुम छोड़ दो जो हैं ख़फा रहने दो अब नाराज़ बस।
हो गुफ्तगू तो बात कुछ लग जाती है उनको बुरी
हमने भी चुप्पी ओढ़ ली आए हुए हैं बाज़ बस।
कुछ मर्सरत कुछ दिलकशी रंगीनियों की बात हो
भौंरे जरा अब तितलियों के देख लें अंदाज़ बस।
खुद को कहे खालिक हमेशा बात करते दीन की
बर वक़्त ऐ मालिक यहां खुलने दो उनके राज़ बस।
आवाम की चिंता न मतलब मुल्क के हालात से
कीमत हो कोई अब सियासत में ज़रूरी ताज बस।
कितने निभाये फर्ज़ लेकिन हो रही अब तो थकन
हक़ भी ज़रूरी है नयन कब तक उठायें नाज़ बस।
सीमा पाण्डेय ‘नयन’
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )
खालिक- ईश्वर सृष्टि रचयिता
सियासत –राजनीति
मसर्रत –खुशी उल्लास