Kavita Chand
Kavita Chand

चांद भी फीका पड़ जाए ऐसा रूप मैंने देखा

( Chand bhi fika pad jaye aisa roop mein ne dekha )

 

चांद भी फीका पड़ जाए ऐसा रूप है मैंने देखा
उतरी हो अप्सरा कोई या भाग्य की किस्मत रेखा

मधुर मधुर मुस्कान बिखेरे छैल छबीली चले चाल
महक उठता मधुबन सारा मन के तार करे धमाल
रूप मनोहर चित को मोहे कजरारे से नैन सुरेखा
चांद भी फीका पड़ जाए ऐसा रूप है मैंने देखा

धवल चांदनी कंचन काया निर्झर बरसे रसधार
स्नेह सुधा की मूर्त सारी रूप सुंदरी अपरंपार
मदमाती वासंती लहरें उमंगों में भीगी तट रेखा
चांद भी फीका पड़ जाए ऐसा रूप है मैंने देखा

खिली वादियां कुदरत की वृक्ष लताएं हरसाई
मस्त बहारें गीत सुरीले अधरों पर मुस्काने छाई
काली घटाएं परियों की रानी लगे वो चित्रलेखा
चांद भी फीका पड़ जाए ऐसा रूप है मैंने देखा

 

रचनाकार : रमाकांत सोनी सुदर्शन

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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