बटवारे का ख़्याल | Batwara par kavita
बटवारे का ख़्याल
( Batware ka khayal )
ना कोई रियासते है न ही हाथी-घोड़े,
बटवारा केवल है ये बर्तन थोड़े-थोड़े।
बटवारे हुये जिनके अनेंको है किस्से,
अब क्या समझाएं तुम हो पढ़ें लिखें।।
बटवारे के लिए हुआ यह महाभारत,
दिन में होता युद्ध शाम पूछते हालत।
सभी परिवारों का आज यही है हाल,
दो गज, ज़मीन हेतु जा रहे हवालात।।
आज हर घर-घर की यही है कहानी,
समझते होशियार वो करते मनमानी।
किया है मात पिता ने जो यह कमाई,
उसके लिए झगड़ रहें यह भाई-भाई।।
दो भाई बटवारे का मुद्दा लिए बैठें है,
जो एक ही आतड़ी से कभी जन्मे है।
ना आना स्त्री व औरों की बहकाई में,
इतना समय मत लगाओ समझने में।।
लगता है ये रक्त कमजोर पड़ रहा है,
बर्दाश्त का मादा भी किस में नही है।
कभी लुटाते यह भाई-भाई पर जान,
आज हाथों में ले रखे है तीर-कमान।।