बदलते हैं
( Badalte hain )
बदलती शाम सुबहें और मौसम भी बदलते हैं
बुरे हालात हों तो दोस्त हमदम भी बदलते हैं।
लगाता ज़ख़्म वो हर बार हंस हंस के मुझे यारों
नयी हर चोट पर हर बार मरहम भी बदलते हैं।
कभी थी सल्तनत जिनकी वो पसमंजर में हैं बैठे
बड़ी हैरत की ताज़ो तख़्त आलम भी बदलते हैं।
हमें कल फ़िक्र थी उल्फ़त की अब औलाद की चिंता
गुज़रते वक्त के साये तले ग़म भी बदलते हैं।
अगर है यार ख़ुश मोती नहीं तो अश्क़ के जैसे
गुले औराक़ पर कतरा -ए- शबनम भी बदलते हैं।
नहीं ख़ुद पे रहे काबू कभी जो इश्क़ हो जाये
दिलों के खेल में दिल हार रुस्तम भी बदलते हैं।
बहुत देखा ज़माने को नयन है मतलबी दुनिया
अग़र रुख़ फ़ेर ले कोई नज़र हम भी बदलते हैं।
सीमा पाण्डेय ‘नयन’
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )