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लगी कुछ देर

( Lagi kuch der )

 

लगी कुछ देर उनको जानने में हां मगर जाना
हमारे प्यार का होने लगा है कुछ असर जाना।

कभी वो हंस दिये रहमत ख़ुदा की हो गई हम पर
हुए नाराज़ तो उसको इलाही का कहर जाना।

हुए ग़ाफ़िल मुहब्बत में भुला दी जात भी अपनी
कहें वो दोपहर को गर सहर हमने सहर जाना।

चले जो साथ में तो राह भी मंजिल लगी मुझको
छुड़ाया हाथ जब तो मंजिलों को भी सफ़र जाना।

तअल्लुक दोस्ती का बस मेरे दम से ही ज़िंदा है
मेरे जज़्बात की उनको नहीं कोई कदर जाना।

दिखावे की मुहब्बत और कहने को मरासिम हैं
दिलों में आज़ कल घुलता है नफ़रत का ज़हर जाना ।

सुहाने ख्वाब़ से कब पेट भरता है यहां यारों
नयन मेहनत से होती जिंदगी सबकी बसर जाना।

 

सीमा पाण्डेय ‘नयन’
देवरिया  ( उत्तर प्रदेश )

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