
ऐसा रोज़ मैं सिलसिला देखता हूँ
( Aisa roz main silsila dekhta hoon )
ऐसा रोज़ मैं सिलसिला देखता हूँ
ख़ुशी का बहुत रास्ता देखता हूँ
बहारों में बू बेवफ़ाई की महके
वफ़ा का मैं मौसम ख़फ़ा देखता हूँ
नज़र आती है बेवफ़ा क्यों वो सूरत
जब भी मैं ये आईना देखता हूँ
दिल पे चोट तो बेवफ़ाई की खायी
नगर में कोई बावफ़ा देखता हूँ
अकेलापन हो दूर मेरे जीवन का
गली दर गली आशना देखता हूँ
लगी है नज़र नफ़रतों की ऐसी
उल्फ़त का चमन उजड़ा सा देखता हूँ
कहता था “आज़म” सिर्फ़ दोस्त तेरा
किसी के गले वो लगा देखता हूँ