बेहाल हर घड़ी

( Behal har ghadi )

 

बेहाल हर घड़ी बड़ी बेचैन जान है
ये इश्क जानिए कि कड़ा इम्तिहान है।

हैं मस अले तमाम ख़फा तिस पे वो हुए
सर पर उठा के रखा हुआ आसमान है।

सब मानते वो शख़्स नहीं ठीक है मगर
हर दिल अज़ीज़ यूं है के मीठी ज़ुबान है।

दिल जब हुआ फ़िदा किसी पे कब पता किया
क्या शान बान और कैसा ख़ानदान है।

हो लाख दूरियां हों ख़लिश फासले भी हों
कुछ तो अभी बचा हमारे दरमियान है।

इस कारोबारे इश्क़ में हासिल भी क्या हुआ
कुछ आह अश्क़ दिल पे ज़ख़्म का निशान है।

हो जायेगा ये फ़ैसला बस थोड़ी देर में
अब आख़िरी गवाह दे चुका बयान है।

 

सीमा पाण्डेय ‘नयन’
देवरिया  ( उत्तर प्रदेश )

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