भला क्या माँगा
भला क्या माँगा
तुझ से दिलदार से मैंने भी भला क्या माँगा
तेरे जलवों से शब-ए-ग़म में उजाला माँगा
तेरी रहमत ने जो भी फ़र्ज़ मुझे सौंपे हैं
उनको अंजाम पे लाने का वसीला माँगा
हर ख़ुशी इनके तबस्सुम में छुपी होती है
रोते बच्चों को हँसाने का सलीक़ा माँगा
तू है दाता हैं तेरे दर के भिखारी हम सब
मैंने माँगा तो क्या कुछ तुझ से अनोखा माँगा
सैकड़ों ग़म हैं मुकद्दर में अकेला मैं हूँ
ऐसी हालत से उबरने का तरीक़ा माँगा
मैं भी हँसते हुए हर ग़म से उबर जाऊँगा
तेरे फ़ैज़ान का हल्का सा इशारा माँगा
ज़िन्दगी बोझ न बन जाये कहीं ऐ सागर
बारे- ग़म सर पे उठाने को सहारा माँगा

कवि व शायर: विनय साग़र जायसवाल बरेली
846, शाहबाद, गोंदनी चौक
बरेली 243003
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