Bharat ka Danka

भारत का डंका

( Bharat ka danka )

 

भारत का डंका बजता था, विश्व गुरु कहलाता था।
मेरा देश स्वर्ण चिड़िया, कीर्ति पताका लहराता था।

ज्ञान विज्ञान धर्म आस्था, नीति नियम योग आचार।
मानवता प्रेम समर्पण, जन-जन भरा था सदाचार।

कला कौशल वीरता भरी, स्वाभिमान सिरमौर रहा।
संत सुरों की पावन भूमि, ज्ञान भक्ति का जोर रहा।

रामकृष्ण पूजे जाते, कण-कण में मिलते भगवान।
सहनशीलता सत्य सादगी, नर चलता सीना तान।

गुरुजनों का वंदन होता, श्रीचरणों में शीश नवाते थे।
श्रवणकुमार सुत आज्ञाकारी, मां-बाप पूजे जाते थे।

पावन गंगा जल की धारा, पावन भाव भरा सारा।
नारी की रक्षा होती तब, भावन अपना देश प्यारा।

दया करुणा ममता बरसाती, मां चरणों में चारों धाम।
मीरा भक्ति प्रेम भरी, परम परमेश्वर कृष्ण निष्काम।

सद्भाव भाईचारा स्नेह जहां, रसधार बहाई जाती थी।
आठों याम खुशियों की बारिश, प्रीत लुटाई जाती थी।

कवि : रमाकांत सोनी

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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