खून सस्ता पानी महंगा

( Khoon sasta pani mehnga ) 

 

प्यासे को पानी भोजन देना हमें सिखाया जाता था।
मोड़ मोड़ पे प्याऊ लगवा के नीर पिलाया जाता था।

महंगाई ने पांव पसारे अब पनघट भी कहीं खो गया।
बोतलों में बिकता नीर खून से पानी महंगा हो गया।

ईर्ष्या द्वेष बैर भर ज्वाला नफरती आंधी चल आई।
इक दूजे के खून के प्यासे घर-घर हो रहे भाई भाई।

रोज राहों सड़कों पर झगड़े खून बहाया जाता है।
पानी खातिर पूछता कौन प्रपंच बिछाया जाता है।

बदल गया वो दौर पुराना बहती थी रसधार जहां।
सद्भावों की धारा अविरल आपस में था प्यार वहां।

खून खौल उठता था तब सुनकर बैरी की ललकार।
मातृभूमि की रक्षा खातिर जब वीर भरते थे हुंकार।

स्वाभिमान संयम खो गए चमचागिरी ने चोला पहना।
आज आदमी सस्ता हुआ दाना पानी हो गया गहना।

 

कवि : रमाकांत सोनी

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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