हे! भारत के इंसान जगो, मैं तुम्हे जगाने आया हूं | Kavita
*हे! भारत के इंसान जगो, मैं तुम्हे जगाने आया हूं।”
( He! Bharat ke insan jago, main tumhe jagane aya hoon )
हे! भारत के इन्सान जगो ,मैं तुम्हें जगाने आया हूं।
भारत मां का बेटा हूं, देवों ने यहां पठाया हूं।।
परशुराम का फरसा जागे श्रीराम, के वाण यहां।
चक्र सुदर्शन श्रीकृष्ण का,हो दुष्टों का संहार यहां।।
शूल जगे शिवशंकर का,जागे देवी कंकाली।
इन्द्र देव का बज्र जगे,और जागे देवी महाकाली।।
मानव उर के भय के भूत को ,मैं भगवाने आया हूं।
हे! भारत के इन्सान जगो—————-(1 )
शनिदेव की जगे दशा ,और शेष ग्रहों का कोप यहां।
महाराणा का भाला जागे,और शिवा की तोप यहां।।
तलवार जगे लक्ष्मीबाई की,मंगल पाण्डे की गोली।
चन्द्रगुप्त की लगनशीलता, चाणक्य नीति की बोली।।
पृथ्वीलोक के दानव कुल के,सिर कटवाने आया हूं।
हे!भारत के इन्सान जगो,———(-2)
शब्दभेदी बाण जगे पृथ्वी का,चन्द्रभाट का बुद्धि बल।
सुभाष बोस की दूरदर्शिता, भगतसिंह का रण कौशल।।
चन्द्रशेखर की कर्मठता,अश्फ़ाक़ उल्ला की देशभक्ति।
सूरजमल का क्षत्रापन जागे, गुरु गोविंद सिंह की शक्ति।।
पावन धरा वासियों को, भाईचारा सिखलाने आया हूं।।
हे!भारत के इन्सान जगो———-(3)
तुलसी,सूर,कबीरा जागो,रहीम और रसखान भी।
राजा भोज, विक्रमादित्य जागो,जागो अशोक महान भी।।
पोरस, हरिश्चन्द्र भी जागो,नल युधिष्ठिर महाराज भी।
संकट में भारत है देखो, विश्वगुरु का ताज भी।।
श्रीकृष्ण कहैं विवेकानंद द्वारा,जीरो से हीरो बनवाने आया हूं।।
रचयिता : आचार्य श्रीकृष्ण भारद्वाज
मथुरा ( उत्तर प्रदेश )