भाग्य
( Bhagya )
भाग्य निखर जाये हमारा जब तकदीरे मुस्काती।
ग्रह आकर साथ देते, खुशियों की घड़ी आती।
सेवा स्नेह संस्कार हृदय में विनय भाव पलता है।
सद्भावो की धारा में, पुष्प भाग्य खिलता है।
पुष्प भाग्य खिलता है
किस्मत के तारे चमकते, सुखों का लगता अंबार।
अनुराग दिलों में पलता, जीवन में बरसता प्यार।
साथ नसीब उनका देता, वीर तूफानों में पलता है।
नसीबों के ताले खुल जाए, पुष्प भाग्य खिलता है।
पुष्प भाग्य खिलता है।
जीवन की हर डगर पर, हौसलों की होती दरकार।
राह की बाधाएं करती, पथिकों का आदर सत्कार।
दशानन का दंभ मिटाया राम कष्ट सबके हरता है।
उसकी लीला वो ही जाने,जब भगवान मिलता है।
पुष्प भाग्य खिलता है।
कृष्ण मित्र सुदामा निर्धन, खेल नसीबों का सारा।
एक तरफ द्वारकाधीश, दूजा दीन सुदामा प्यारा।
किस्मत की लकीरों का बोलो भेद कहां मिलता है
खुशियों की बरसाते कहीं भाग्य सोया मिलता है
पुष्प भाग्य खिलता है।
रचनाकार : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )