भटकता मन

भटकता मन | Kavita

भटकता मन

( Bhatakta man )

 

भटकते मन में मेरे आज भी, कुछ आस जिन्दा है।
भरा  है  चाहतों  से  शेर मन पर, प्यास जिन्दा है।

 

उसी  को  टूट  कर चाहा, खुदी को ही भुला करके,
अधुरी चाहतों का अब भी कुछ,एहसास जिन्दा है।

 

किसी को चाहना और वो मिले, ये सच नही होता।
तुम्हारे सा ही उसमे प्यार हो, ये जाहिर नही होता।

 

तुम्हारा  कैसे  होगा  जब  वो, पहले से किसी का है,
तुम्हारा प्यार राधा सा है पर,सबमें कृष्ण नही होता।

 

मिला हैं जो भी तू अपना ले, वर्ना ग़म जदा होगा।
वो तेरा ना ही था पहले, ना अब भी वो तेरा होगा।

 

भटकता  क्यों  है तू हुंकार , सच को सामने ले आ,
मोहब्बत कर लिया उसकी,खुशी तो ग़म तेरा होगा।

 

✍?

कवि :  शेर सिंह हुंकार

देवरिया ( उत्तर प्रदेश )

यह भी पढ़ें : –

जय श्रीराम | Jai Shri Ram par Kavita

 

 

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *