बिन बुलाए | Bin Bulaye
बिन बुलाए
( Bin Bulaye )
बिन बुलाए आज तुम
फिर कहां से आ गए हो।
बंद पड़े सूने मकां की
कुंडी खटखटा गए हो।
मोगरे सी महका गई है
तेरी यादों की खुशबू ।
छटपटा उठी जो दफन थी
दिल में कोई जुस्तजू।
पता नहीं अब क्या होगा
आंख बाईं फड़का गये हो।।
क्यों हवा दे दी तुमने
उस बुझती हुई चिंगारी को।
क्या बनाना चाहती हो
शहंशाह एक भिखारी को।
अपनी ही ठोकर से तुम
मधु कलश ढलका गये हो।।
जी लेने दो मुझे अब
बची हुई सांसों के साथ।
अब नहीं होना गवारा
जिबह अपनों के ही हाथ।
कैसे भूलूं उन हाथों को
जिनसे छुरी चला गये हो।।
बिन बुलाए आज तुम
फिर कहां से आ गए हो।।
डॉ. जगदीप शर्मा राही
नरवाणा, हरियाणा।