अपनों ने ही घाव गहरे दिए
( Apno ne hi ghav gehre diye )
सच्चाई का दिया साथ तो हम गैर हो लिए।
अपनों ने ही घाव गहरे वो दर्द हमको दिए।
माना था कि साथ देंगे हमें जिंदगी में सभी।
निज स्वार्थ साध वो भी अपने रस्ते हो लिए।
टूटने ना देंगे हम आंगन की दरो दीवारों को।
जिन पर था विश्वास अटूट घाव वो ही दे गए।
लुटाने चले थे मोती प्यार के हम भी जहां में।
वो मोड़कर मुंह हमसे होकर बेगाने चले गए।
खुश कर ना सके हम उनके इरादों मंसूबों को।
बेकार है यह शख्स वो भी कहकर चले गए।
मेहनत भी कितनी करें की जान जवाब देती।
तेरे बस का नहीं यह काम बिन बात छले गए।
तेवर भी उनको ही दिया बेशुमार जो पैसा है।
कैसी यह परीक्षा हम किस सांचे में ढले गए।
मुश्किलों से हम लड़े तूफानों को भी झेला है।
झुकना नहीं सीखा हमने कई बवंडर चले गए।
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )