बिठा तब है मज़ा
बिठा तब है मज़ा
पास मुझको तू बिठा तब है मज़ा
जाम आँखों से पिला तब है मज़ा
प्यार करता है मुझे तू किस तरह
बात यह खुलकर बता तब है मज़ा
बज़्म में आते ही छा जाता है तू
यह हुनर मुझको सिखा तब है मज़ा
डस रहीं हैं मुझको यह तन्हाइयां
इनसे तू आकर बचा तब है मज़ा
होश खो देता हूँ जिस को देखकर
फिर से वो जलवा दिखा तब है मज़ा
ढल रही है शाम कुछ ही देर में
मयकदा जल्दी सजा तब है मज़ा
है पड़ी ज़ंजीर साग़र पाँव में
फिर भी हो वादा वफ़ा तब है मज़ा
