![Pardes mein Raha Pardes mein Raha](https://thesahitya.com/wp-content/uploads/2024/02/Pardes-mein-Raha-696x463.jpg)
परदेस में रहा
( Pardes mein raha )
दीवारो-दर से जिसकी सदा गूँजती रही
मेरी निगाह घर में उसे ढूँढती रही
अहसास था ख़याल तसव्वुर यक़ीन था
किस किस लिबास में वो मुझे पूजती रही
मैं काम की तलाश में परदेस में रहा
वो ग़मज़दा ग़मों से यहीं जूझती रही
मैं लिख सका न उसको तबस्सुम की चिट्ठियाँ
लिख लिख के क़हक़हे वो मुझे भेजती रही
बच्चों की ज़िद में उसने कभी की कमी नहीं
ख़्वाहिश वो अपने दिल की सदा टालती रही
दीवार जब उठाई तो सबको सुकून था
पुरखों की आन-बान मगर टूटती रही
साग़र रह-ए- हयात में आयेंगी मुश्किलें
तेरी ग़ज़ल ये सच ही अगर बोलती रही