बोझिल सांसें

बोझिल सांसें | Bojhil saansein ghazal

 बोझिल सांसें 

( Bojhil saansein )

 

❣️

रोज़ निकली दिल से ही आहें बहुत
आजकल बोझिल रहती सांसें बहुत
❣️
ढूंढ़ता ही मैं रहा राहें वफ़ा
बेवफ़ा मिलती रही राहें बहुत
❣️
जख़्म कुछ ऐसे मिले अपनों से है
रोज़ अश्कों में भीगी आंखें बहुत
❣️
प्यार की बातें नहीं वो करते है
अपने करते नफ़रत की बातें बहुत
❣️
मैं भुलाना चाहता हूँ जीतना
रुलाती दिल को उतना यादें बहुत
❣️
जान पे बन आयी है रब अब मेरी
हो गये घर में दुश्मन अपनें बहुत
❣️
की हंसाने कोई भी आता नहीं
जिंदगी में रुलाने आयें बहुत
❣️
क्या ख़ुशी आज़म मिलेगी जीस्त में
जीस्त में ग़म के भरे सायें बहुत

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शायर: आज़म नैय्यर

(सहारनपुर )

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