
दिल लगाना है मुझे भी
( Dil lagana hai mujhe bhi )
अमीर खुसरो से लेकर गुलज़ार, ग़ालिब है दीवाना
बचूंगा भला मैं कैसे इस मुहब्बत से
दिल लगाना है मुझे भी
दिलकशी जानना है
जान – ए- बहार के वक़्त
रश्क-ए-चमन में मुझे भी यारी का खुसबू लुटाना है
कोई मिले तो सही
मुझे भी दिल लगाना है
खुद की क़त्ल की तैयारी कर रहा हूँ मेरे यार
मुहब्बत करना है, और करना भी क्या है मेरे यार
ज़ोहरा-जबीं, तेरे नूर से
अपनी नफ़्स को सजाना है
भले देर से मिलो
मगर तुम्हे कसकर गले लगाना है
सर भारी है
और बदन को भी पाक होनी है
जिस रोज इश्क़-ए-मान, तुम मिलोगी
उसी रोज ये उल्फत छोड़ देनी है
मेहबुब तुम मिलो तो सही
में बचूंगा भला मुहब्बत से कैसे
दिलरुबा तुम आओ
क़ायनात की रक़्स में तुम्हारी भी तो नज़र उतारनी है
शायर: स्वामी ध्यान अनंता