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बात एक कॉल की | Baat ek Call ki

बात एक कॉल की

( Baat ek call ki ) 

 

14 अक्टूबर 14:14 पर कॉल आया,

उसी पर मैंने यह हास्य व्यंग बनाया ।

एक दिन दोपहर में आया मुझे फोन,

घंटी उसकी सुनकर हो गया मैं मौन।

देखा मोबाइल तो नॉर्मल कॉल आया था,

पूजनीय सतीश जी ने कॉल लगाया था।

कुछ पल के लिए हक्का-बक्का रह गया,

अचानक कॉल देखकर थोड़ा सहम गया।

मुझे लगा फिर से मुझसे कोई गलती हो गई,

जाने मेरी कौन सी बात किसको खल गई।

इसी उधेड़बुन में कुछ समय निकल गया,

फोन उठाने लगा तब तक कॉल कट गया।

अब तो मैं और ज़्यादा हो गया परेशान,

समझ में नहीं आया क्या करूं श्रीमान।

मैंने उन्हें फटाफट तुरंत कॉल लगाया,

सामने से मोबाइल एंगेज नज़र आया।

ज़ल्दी से व्हाट्सएप चैट शुरू की,

अपनी जिज्ञासा उन तक प्रकट की।

मैंने पूछा आपने मुझे कॉल लगाया था,

जब तक मैं उठा पाता फोन कट गया था।

जब उन्होंने कॉल का कारण बताया,

सुनकर पहले तो मेरा माथा चकराया।

उपस्थिति पटल पर दर्ज क्यों नहीं कराई,

इतने दिनों से कहाँ गायब थे सुमित भाई।

हाल पूछने के लिए फोन लगाया था,

आपकी कुशलता का ख़्याल आया था।

इतना पढ़ मेरे दिल को मिला चैन,

खुशी से झलक उठे मेरे दो नैन।

वाह रे ऑनलाइन तेरी भी महिमा बड़ी ग़ज़ब ढाती है,

नहीं दिखता कोई करीबी ऑनलाइन तो उसकी चिंता सताती है।

 

कवि : सुमित मानधना ‘गौरव’

सूरत ( गुजरात )

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