मां नवदुर्गा

( Maa Navdurga ) 

( 1 )

 

नौ रूप में नौ दिनों तक होती माता की आराधना,
जो भी पूजे इनको होती उसकी पूरी हर मनोकामना।

समूचे जगत में फैली हुई है तेरी अनुपम महिमा,
न होता कल्याण किसी का तेरी कृपा के बिना।

हे माता शेरावाली हे माता जोतावाली,
पूरी कर दे मुरादें मेरी माता पहाड़ावाली।

तू ही अम्बे तू ही काली तू ही माता जग कल्याणी,
दुष्टों के लिए काल प्रलाप भक्तों के लिए मीठी वाणी।

रूप अनेक तेरे माता तू शैलपुत्री तू ही ब्रह्मचारिणी,
महिषासुर घाती माता तू ही चंड मुंड संहारिणी।

चंद्रघंटा देवी कूष्मांडा स्कंदमाता तू ही जग की अधिष्ठात्री,
कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और तू ही सिद्धिदात्री।

नौ दिन नौ रूप में पूजी जाती माता शेरावाली,
भक्तों की हर पुकार सुनती दुख सारे मिटाने वाली।

मेरे दुखों कष्टों से मुक्ति का मुझको भी वर दे,
जय हो जगतजननी जय मां अम्बे जय मां शारदे।

( 2 )

जगदाती पहाड़ों वाली मां मेरे दुख मिटाने आ जाना,
मेरे जीवन की नैया को दुखों के भंवर से बचा जाना।

भटक भटक मैं थक गया जालिम दुनिया के गलियारों में,
जीवन मेरा है फंसा हुआ गम के काले अंधियारों में।

जननी मेरी है जा चुकी मुझको अकेला छोड़कर,
मेरा और सहारा कोई नहीं सब दूर हुए मुंह मोड़कर।

अब तू ही मेरी माता है और तू ही एकमात्र सहारा है,
तेरी कृपा के सिवा अब दिखता नहीं कोई किनारा है।

हे चिंताहरणी हे भयनाशनी अब आस सिर्फ तुम्हीं पर है,
आ जाओ मां अब और इन्तजार नहीं सांसे होने लगी अधर हैं।

दुख दूर करो खुशियां दे दो मुझको भी तो कुछ जीवन में,
यूं भटक भटक बीत रही जिंदगी गमों के भयानक वन में।

मेरी जान भंवर में फंसी उसे पार लगाने आ जाओ,
मेरी लाज बचाने आ जाओ मेरी चिंता मिटाने आ जाओ।

 

रचनाकार –मुकेश कुमार सोनकर “सोनकर जी”
रायपुर, ( छत्तीसगढ़ )

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