वेश्याएं

( Veshyaen ) 

 

उनकी गलियों में,
दिन के उजाले में जाना,
सभ्य समाज को,
अच्छा न लगता,
इसलिए छद्म वेश में ,
रात्रि के अंधियारे में ,
छुप-छुप कर वह जाता है ,
सुबह दिन के उजाले में,
सभ्यता का लबादा ओढ़े ,
सदाचरण पर भाषण देता,
लोग उसे देवता समझ ,
फूल मालाओं से लाद देते ,
वही वेश्याएं ,
घृणा की नजरों से देखी जाती।

आखिर ये सभ्य कहलाने वाले,

क्या नहीं है जिम्मेदार?
जो उनकी ऐसी,
जलालत भरी जिंदगी जीने को, मजबूर करती ।
वेश्याएं नहीं मानती ,
जाति पाति उच्च नीच का भेदभाव ,
पंडित हो या भंगी ,
समान भाव से,
अपने शरीर का समर्पण करती आखिर सोचिए ,
जिस कार्य को हजारों वर्षों से, हमारे धर्म गुरु नहीं कर सके,
वह कर रही हैं ,
ये वेश्याएं।

 

योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )

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