परवर दिगारी दे

परवरदिगार दे

परवरदिगार दे तासीरे-इश्क़ इतनी तो परवरदिगार देदेखे मुझे तो अपनी वो बाँहें पसार दे यह ज़ीस्त मेरे साथ ख़ुशी से गुज़ार देइस ग़म से मेहरबान मुझे तू उबार दे मुद्दत से तेरे प्यार की ख़्वाहिश में जी रहायह जांनिसार तुझ पे बता क्या निसार दे इतनी भी बे नियाज़ी मुनासिब नहीं कहींजो चाहता है वो…

इस जहाँ से मुझे शिकायत है

इस जहाँ से मुझे शिकायत है

इस जहाँ से मुझे शिकायत है इस जहाँ से मुझे शिकायत हैक्यों दिलों में यहाँ हिकारत है गुल खिला लो अभी मुहब्बत केजान जाओ यही इबादत है क्यों किसी से करें मुहब्बत हमजब सभी की लुटी शराफ़त है उँगलियाँ वक्त पर करो टेड़ी ।ये पुरानी सुनो कहावत है प्यार करना कोई गुनाह नहींधोखा देना बुरी…

तुम्हारे दर्द

तुम्हारे दर्द रह रह कर के तड़पाते अभी भी हैं

तुम्हारे दर्द रह रह कर के तड़पाते अभी भी हैं तुम्हारे दर्द रह रह कर के तड़पाते अभी भी हैं,तुम्हें हम प्यार दिलबर करके पछताते अभी भी हैं । कई आए गए मौसम जुलाई से दिसम्बर तक,मेरी पलकों की किस्मत में तो बरसाते अभी भी हैं । कहे थे लफ़्ज़ जो तुमने मेरे कानों में…

बड़ा दिलकश मैं मंजर देखती हूँ

बड़ा दिलकश मैं मंजर देखती हूँ

बड़ा दिलकश मैं मंजर देखती हूँ बड़ा दिलकश मैं मंजर देखती हूँतेरी आँखों में सागर देखती हूँ हुई मा’दूम है इंसानियत अबहर इक इंसान पत्थर देखती हूँ पता वुसअत न गहराई है जिसकीवो सहरा दिल के अंदर देखती हूँ हुनर ज़िंदा रहेगा है ये तस्कींमैं हर बच्चे में आज़र देखती हूँ न ग़ालिब और कोई…

दिल्लगी अच्छी नहीं है

दिल्लगी अच्छी नहीं है

दिल्लगी अच्छी नहीं है यक़ीं मानो मिरे जानी नहीं हैं।ज़ियादा दिल्लगी अच्छी नहीं है। किसी पर मालो-दौलत के जबल हैं।किसी पर एक भी रत्ती नहीं है। दसों कर डाले उसको फ़ोन लेकिन।वो आने के लिए राज़ी नहीं है। ख़ुशी से सैंकड़ों मेह़रूम हैं,पर।ग़मों से कोई भी ख़ाली नहीं है। हज़ारों राज़ पोशीदा हैं इसमें।हमारी बात…

उसे पास बुलाते क्यों हो

उसे पास बुलाते क्यों हो

उसे पास बुलाते क्यों हो टूटने है जो मरासिम वो निभाते क्यों होदूर जाता हो उसे पास बुलाते क्यों हो। वक्त माकूल नहीं हो तो बिगड़ती चीज़ेंदौर-ए-तूफाॅं में चिराग़ों को जलाते क्यों हो। तुम हमारे हो फ़कत है ये नवाज़िश हम परबस गिला ये है कि एहसान जताते क्यों हो। आइना सबको दिखाकर के गिनाकर…

निकल गया

निकल गया | Nikal Gaya

निकल गया ऐसे वो आज दिल के नगर से निकल गया।जैसे परिन्द कोई शजर से निकल गया। किस रूप में वो आया था कुछ तो पता चले।बच कर वो कैसे मेरी नज़र से निकल गया। क्यों कर न नफ़़रतों का हो बाज़ार गर्म आज।जज़्बा-ए-इ़श्क़,क़ल्बे-बशर से निकल गया। उस दिन ही मेरे दिल के महक जाएंगे…

मस्तियों में जी मैंने

मस्तियों में जी मैंने

मस्तियों में जी मैंने शराबे – शौक़ निगाहों से उसकी पी मैंनेतमाम उम्र बड़ी मस्तियों में जी मैंने हज़ारों किस्म की चीज़ों से घर सजाया थातुम्हारे शौक़ में रख्खी नहीं कमी मैंने जुनून ऐसा चढ़ा था किसी को पाने कालगाई दाँव पे हर बार ज़िन्दगी मैंने हज़ारों ग़म थे खड़े ज़िन्दगी की गलियों मेंहरेक मोड़…

हमेशा रहे बेसहारों में शामिल

हमेशा रहे बेसहारों में शामिल

हमेशा रहे बेसहारों में शामिल रहे तनहा होकर हज़ारों में शामिलहमेशा रहे बेसहारों में शामिल सदा ही रही है ख़ुशी दूर हमसेरहे हम सदा ग़मगुसारों में शामिल नहीं बन सके हम महाजन कभी भीसदा ही रहे देनदारों में शामिल ज़मीं पे मिलन हो न पाया हमाराचलो होंगे अब हम सितारों में शामिल मिली हमको मन…

क्या कहूँ

क्या कहूँ | Kya Kahoon

क्या कहूँ क्या कहूँ दिल ने मुझे उल्फ़त में पागल कर दियाथोड़ा में पहले से था उसने मुकम्मल कर दिया अपनी आँखों का सनम तूने तो काजल कर दियाआँख से छूकर बदन को तूने संदल कर दिया शह्र में चर्चे बड़े मैला ये आँचल कर दियाक्या कहें दिल रूह को भी मेरी घायल कर दिया…