देश से | Desh se
देश से ( Desh se ) हर अदू भागते ही रहे देश से जुल्म का हर निशाँ ही मिटे देश से लौट आये वो अपने वतन भारत में दूर परदेश में ही गये देश से प्यार के फूल हर घर खिले ऐ लोगों नफ़रतों के कांटे ही जले देश से हो न मासूम पर…
देश से ( Desh se ) हर अदू भागते ही रहे देश से जुल्म का हर निशाँ ही मिटे देश से लौट आये वो अपने वतन भारत में दूर परदेश में ही गये देश से प्यार के फूल हर घर खिले ऐ लोगों नफ़रतों के कांटे ही जले देश से हो न मासूम पर…
दिल को ( Dil ko ) बे -इंतहा, बे – हिसाब, बे – पनाह, बे- पायान प्यार है ‘ गर दिल को बे – इंतहा, बे – हिसाब, बे- पनाह, बे -पायान दर्द भी होता है उस दिल को.. लेखिका :- Suneet Sood Grover अमृतसर ( पंजाब ) यह भी पढ़ें :- अलसायी कलम |…
फ़िक्र जहां की! ( Fikr jahan ki ) बेवजह दिल दुखाना मुनासिब नहीं, जग में नफरत बढ़ाना मुनासिब नहीं। फूल खिलते रहें सारी दुनिया में यूँ, बैठी तितली उड़ाना मुनासिब नहीं। धरती नभ से मिले ये तो मुमकिन नहीं, तोड़ ढूँढों नहीं, ये मुनासिब नहीं। कोई कुदरत के हक़ को मिटाने लगे, फ़िक्र हो…
इक पल ( Ik pal ) वक्त के गुबार से निकला हुआ अधूरे अधजले ख्वाबों की खाक में लिपटा हुआ वो इक ‘पल’ रूबरू आ गया हो जैसे… खुद ही उसकी राख उतार खारे पानी से धो संवारकर संजोकर संभाल कर उस इक ‘पल’ को अब कई बार जी जाना है मुझे लेखिका…
होते हो तुम ही ( Hote ho tum hi ) इक फुहार में इस बयार में बदलते मौसम में इस छम्म छम्म मे होते हो तुम ही देते इक सिहरन सी दिल से निकलते लफ्ज़ों में एहसास में हर आसार में होते हो तुम ही तासीर लिए मेरे मिजाज की तल्ख से अंदाज़…
तालमेल का नाम जिन्दगी ( Talmel ka Nam Zindagi ) तू मेरी नज़्म ही सही पर आया तो करो, आकर मेरे ख्वाबों को सताया तो करो। इसी तालमेल का नाम है जिन्दगी महबूबा, मेरी तन्हाइयों में आग लगाया तो करो। बे -जमीरों के झाँसे में कभी आना नहीं, ऐसे गैरतों से खुद को बचाया…
अब की …. बरसात ( Ab ki …. Barsaat ) सुना शहर तेरे में जम के कुछ यूं बरसात हुई मेरे आने से तेरे दिल की ज़मीं क्यों सहरा ना हुई जलन कुछ इस तरह की ले आया था सीने में मैं पत्थर मोम से पिघले मगर क्यों चश्म ए नम ना हुई…
उसका सितम इनायत से कम नहीं! ( Uska sitam inayat se kam nahin ) सैकड़ों तीर उसे चलाना आ गया, जैसे मेरे घर मयखाना आ गया। बढ़ती जब तलब आती है मेरे घर, उसको भी दिल लगाना आ गया। छोटे – सी थी अब हो गई है बड़ी, वादा उसे भी निभाना आ गया।…
ख़ुदा पे जिसको यक़ीं नहीं है ( Khuda pe jisko yakeen nahi hai ) हयात उसकी हसीं नहीं है ख़ुदा पे जिसको यक़ीं नहीं है है कौन दुनिया में शख़्स ऐसा ? तू जिसके दिल का मकीं नहीं है जो तेरे दर पर झुकी नहीं हो कोई भी ऐसी ज़बीं नहीं है बसा है…
घात लगाकर बैठे हैं ( Ghaat lagakar baithe hain ) कुछ अपने ही ऐसे हैं प्यार बहुत दिखलाते हैं दिल में धोखा रखते हैं वे सब होते अपने हैं गम जितने भी देते हैं बात कभी करते हैं जब करते दिल की बातें कब पैसे पर मरते हैं सब ऐसो को क्या कहते तब…