ढ़ल रहा है सूरज होने को शाम है

ढ़ल रहा है सूरज होने को शाम है

ढ़ल रहा है सूरज होने को शाम है     ढ़ल रहा है सूरज होने को शाम है और मछली पकड़े है मछयारा देखो   राह देखें है बच्चें भूखे बैठे है लेकर आयेगे खाना पिता खाने को   नाव में ही खड़ा है आदमी मुफ़लिसी वो ही मछली पकड़के गुजारा करता   बादलो में…

है गुल से हम को उलफ़त तो ख़ार भी है प्यारा

है गुल से हम को उलफ़त तो ख़ार भी है प्यारा

है गुल से हम को उलफ़त तो ख़ार भी है प्यारा   है गुल से हम को उलफ़त तो ख़ार भी है प्यारा। गुलशन में खुश वही है जो समझ गया इशारा।।     पत्थर पे मैंहदी पिसती अग्नि में तपता सोना। दुःखों को सहन करके जीवन सभी निखारा।।     हम डूब जायें बेशक…

दोस्त करनी दुश्मनी अच्छी नहीं

दोस्त करनी दुश्मनी अच्छी नहीं

दोस्त करनी दुश्मनी अच्छी नहीं     दोस्त करनी दुश्मनी अच्छी नहीं! रिश्तों में यूं  बेरुख़ी अच्छी नहीं   जिंदगी की लुट जाये खुशियां अगर फ़िर ये कटती जिंदगी अच्छी नहीं   प्यार से मिलकर रहों हाँ उम्रभर यूं  करनी नाराज़गी अच्छी नहीं   चैन दिल का लुट ले जाती है सभी हाँ ये करनी…

जरा सी बात इतनी भारी हुयी

जरा सी बात इतनी भारी हुयी

जरा सी बात इतनी भारी हुयी   जरा सी बात इतनी भारी हुयी। उम्र भर  की हमें बीमारी हुयी।।   आज जी भर के शायद रोया है, इसी से आंख भारी भारी हुयी।।   फरेबी नश्ल ही रही उसकी, हानि जो भी हुयी हमारी हुयी।।   उसे सुला के ही सो पाता हू़, न जाने…

पी मुहब्बत की मैंनें भी चाय है 

पी मुहब्बत की मैंनें भी चाय है !

पी मुहब्बत की मैंनें भी चाय है      पी मुहब्बत की मैंनें भी चाय है ! इसलिए आहें निकलती दिल से है   मिल गया है दर्द दिल को इक ऐसा वो गया पीला दग़ा की चाय है   बेवफ़ा से मैं मुहब्बत कर बैठा जो नहीं समझा वफ़ा की चाय है   रह…

पास उसके हमारा घर होता

पास उसके हमारा घर होता

पास उसके हमारा घर होता     काश कुछ इस कदर बसर होता। पास उसके हमारा घर होता ।।   काटकर पेड़ उसने रोके कहा छांव मिलता जो इक शज़र होता।।   रतजगे मार डालेंगे अब मुझे, यार तुम पर भी कुछ असर होता।।    जीने मरने की तो फिकर ही कहां, जो भी होता…

प्यार है तू देख मेरे गांव में

प्यार है तू देख मेरे गांव में

प्यार है तू देख मेरे गांव में     प्यार है तू देख मेरे गांव में जो नहीं है शहर में लेकिन तेरे   नफ़रतों के ही मिले ख़ंजर मुझे दोस्त चलता हूँ मै अपनें गांव में   शहर में तो तल्ख़ लहजे है बहुत प्यार के लहजे है  मेरे गांव में   चोट दिल…

ढा रही है सितम ये हंसी आपकी

ढा रही है सितम सादगी आपकी

ढा रही है सितम सादगी आपकी     ढा  रही  है  सितम सादगी आपकी। कातिलाना अदा  यूं  सभी  आपकी।।   उस ख़ुदा की तरह दिल से चाहा तुझे। कर  रहा  है  ये  दिल  बंदगी आपकी।   महफिलों  में  गया  तो  वहां  ये लगा। खल रही है कहीं कुछ कमी आपकी।।   हुश्न तेरा वो दिल…

chaahe kaante mile ya ki phool

चाहे काँटे मिले या कि फूल

चाहे काँटे मिले या कि फूल   चाहे काँटे मिले या कि फूल मुस्कुरा के तू कर ले क़ुबूल   झूट को सच कहा ही नहीं अपने तो कुछ हैं ऐसे उसूल   हाल ऐसा हुआ हिज्र में जर्द आँखें है चेहरा मलूल   आस फूलों की है किसलिए बोये हैं आपने जब बबूल  …

ग़म में ही ऐसा बिखरा हूँ

ग़म में ही ऐसा बिखरा हूँ

ग़म में ही ऐसा बिखरा हूँ     ग़म में ही ऐसा बिखरा हूँ ! अंदर से इतना टूटा हूँ   दिल से उसका मेरे भुला रब यादों में जिसकी  रोता हूँ   नफ़रत उगली है उसने ही जब भी कुछ उससे बोला हूँ   ग़ैर हुआ वो चेहरा  मुझसे उल्फ़त जिससें मैं करता हूँ…