ग़म में ही ऐसा बिखरा हूँ
ग़म में ही ऐसा बिखरा हूँ
ग़म में ही ऐसा बिखरा हूँ !
अंदर से इतना टूटा हूँ
दिल से उसका मेरे भुला रब
यादों में जिसकी रोता हूँ
नफ़रत उगली है उसने ही
जब भी कुछ उससे बोला हूँ
ग़ैर हुआ वो चेहरा मुझसे
उल्फ़त जिससें मैं करता हूँ
भेज ख़ुदा कोई तो साथी
जीवन में रब मैं तन्हा हूँ
तल्ख़ करे वो बातें मुझसे
जब भी उससे मैं मिलता हूँ
चैन नहीं आज़म के दिल को
हर पल अब आहें भरता हूँ