चाहतों का नजीर लगता नहीं | Chahat shayari
चाहतों का नजीर लगता नहीं
( Chahaton ka nazeer lagta nahin )
चाहतों का नजीर लगता नहीं
कोई दिल से अमीर लगता नहीं
आज के दौर में मुझे तो यहाँ
कोई जिंदा जमीर लगता नहीं
मतलबी इस जहान में अब मुझे
शख़्स कोई कबीर लगता नहीं
सब बड़े है निग़ाह में मेरी तो
कोई मुझको हक़ीर लगता नहीं
नफ़रतों के जहां में कोई मुझे
प्यार का राहगीर लगता नहीं
मांगता है जो भीख हर इक घर से
शक्ल से वो फ़कीर लगता नहीं
सच कहूँ तो जहीन आज़म मुझे
अब वतन का वजीर लगता नहीं
शायर: आज़म नैय्यर
(सहारनपुर )
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