मुहब्बत का दिलों में गुल खिला दें
मुहब्बत का दिलों में गुल खिला दें

मुहब्बत का दिलों में गुल खिला दें

( Muhabbat ka dilon mein gul khila de )

 

 

मुहब्बत का दिलों में गुल खिला दें
 हवा  ऐसी  यहां  सबको  ख़ुदा  दें

 

गरीबों  पे  सितम  हो  जो  रहा  है
ख़ुदा उन दुश्मनों का  सर झुका दें

 

उतरे तन से नफ़रत की धूल सबके
उल्फ़त की बारिशों का सिलसिला दें

 

दिखा दें  रब  करिश्मा कोई ऐसा
किसानों का सभी हक  रहनुमा दें

 

सितम  मासूमों  पे  ही हो रहा है
ख़ुदा उन ज़ालिमों को ही सज़ा दें

 

बहारे बरसें उल्फ़त की नफ़रत पे
यहाँ  रब  आज  ऐसी  वो हवा दें

 

नहीं तकदीर में आज़म की वो था
उसी की याद दिल से रब भुला दें

 

❣️

शायर: आज़म नैय्यर

(सहारनपुर )

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