आफत पे आफत
जो आन ही पड़ा था सो खामोसी से आ गया होता
जाने वालो को किसका इन्तिज़ार, जा लिया होता
हम पर तो आफत पे आफत है, और सब क़ुबूल है
क्या होता अगर सजदा को सर ही ना दिया होता
बात कभी किसी के ना सुनी गयी, ना कही गयी
ऐसा है तो फिर कोई बात ही ना बनाया होता
नज़र उठे तो क़या, हाथ उठे तो दुआ, सर से भये सजदा
तमाशा-ए-अहल-ए-करम ना होता तो हमारा क्या होता
किसी और से सुनी गयी बात हमारी ‘अनंत’
कुछ तो हक़ीक़त होता अगर हम से सुना होता
शायर: स्वामी ध्यान अनंता
( चितवन, नेपाल )