चाहें तुमसे भी बतियाना | Chahe tumse bhi batiyana | Kavita
चाहें तुमसे भी बतियाना
( Chahe tumse bhi batiyana )
नये पौधों को पानी देकर, बूढ़े बरगद को भी जाना ।
बूढ़े है वो अपने घर के, चाहें तुमसे भी बतियाना ।।
माना कि अब फल ना देंगे,पर अनुभव की खान है बूढ़े
तेरी जो हस्ती है आज, उसकी ही पहचान है बूढ़े
अपनी बीती दुनिया रीति, चाहें तुमको भी समझाना ।
बूढ़े है वो अपने घर के, चाहें तुमसे भी बतियाना ।।
तुम ही गर पानी ना दोगे, तो कैसे पनपेंगे बूढ़े
इतना सा बस याद रखो तुम, फिर से ना जन्मेंगे बूढ़े
आँखो देखी दुनिया रीति, चाहें तुमको भी दिखलाना।
बूढ़े है वो अपने घर के, चाहें तुमसे भी बतियाना ।।
तुम भी तो फल की आशा में, नये पौधों को पाल रहे हो
बूढ़ों की भी यही सोच थी, फिर क्यों कर्तव्य टाल रहे हो
“चंचल”गलत अगर है ये तो,थोड़ा मुझको भी समझाना।
बूढ़े है वो अपने घर के, चाहें तुमसे भी बतियाना ।।
कवि : भोले प्रसाद नेमा “चंचल”
हर्रई, छिंदवाड़ा
( मध्य प्रदेश )