Kavita Phagun ke Rang
Kavita Phagun ke Rang

भीग गया अंग-अंग फागुन के रंग

( Bheeg gaya ang-ang phagun ke rang ) 

 

भीग गया सारा अंग-अंग फाल्गुन के यह रंग,
मस्त फुहारें फाग मस्ती में झूम रहें सभी संग।
हर मुखड़े पर रंग लगा किसी के लगी गुलाल,
धूम-मचाती होली आई बाज रहें है देखो चंग।।

एक थाली गुलाल रखी दूसरी में सोंप सुपारी,
बुरा न मानो होली है भूल जाओ दुनियादारी।
दुश्मन को भी रंग दो यार चलाकर पिचकारी,
गा रे गा फाल्गुन के गीत यह कहते नर-नारी।।

चलों दोस्तों दुश्मनी भूलें अब होली के बहाने,
शत्रु को भी गलें लगाकर नफ़रते सब भुलादे।
इन प्यारे-प्यारे रंगों जैसा हो सभी का जीवन,
मिलकर नाचें-गाए और गिले-शिकवें भुलादे।।

अवतारी पुरुष भी खेलें थे यह रंगो की होली,
पीछे-पीछे चलती जिनके सखाओं की टोली।
बृज-वृंदावन अवध गवाह है आज भी उनका,
श्रीराम अवध में कान्हा बृज में खेलें थें होली।।

कवि-कवियत्री लिख रहें है होली पर रचनाएं,
बैर, घृणा को भूलकर मित्रता सभी अपनाएं।
चलों मिलकर फाल्गुन में खुशियां हम मनाएं,
तन-मन से लिखों कविता कि हृदय छू जाएं।।

 

रचनाकार : गणपत लाल उदय
अजमेर ( राजस्थान )

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