
आपस में करेंगे सहकार
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आपस में करेंगे सहकार,
यूं न बैठेंगे थक-हार।
कमियों पर करेंगे विमर्श,
खोजेंगे सर्वोत्तम निष्कर्ष।
मिलजुल सब करेंगे संघर्ष,
चेहरे पर होगा हर्ष ही हर्ष।
देखते हैं परिस्थितियां कब तक नहीं बदलतीं?
कब तक खुशियों की फुलझरिया नहीं खिलती?
आंखों से आंखें,गले से गले नहीं मिलती?
यकीं है शीघ्र ही होगा सवेरा,
जब ना कुछ तेरा होगा न मेरा;
यह धरा सह अस्तित्व का बनेगा बसेरा।
मिलजुल शांति से रहेंगे,
तो हर दिन उत्सव मनायेंगे।
आपस में करके सहकार,
आशाओं के दीप जलायेगे।
हर नन्हीं सी कली फूल को,
अपनी बगिया में लगायेंगे।
उनकी भीनी खुशबू से-
वसुंधरा को महकाएंगे,
आपस में सहकार का-
कुछ इस तरह लाभ उठायेंगे।
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लेखक– मो.मंजूर आलम उर्फ नवाब मंजूर
सलेमपुर, छपरा, बिहार ।
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