Chahiye poetry

चाहिये | Chahiye poetry

चाहिये

( Chahiye )

 

तेरे मेरे बीच की अब धुन्ध छटनी चाहिये ।
आग की दीवार दरिया में बदलनी चाहिये ।।

 

जमाना कठपुतलियों का बहुत पीछे रह गया ।
उनको सीधे उंगलियों से ही उलझना चाहिये ।।

 

मेरी मेहनत तुम्हारी दौलत का झगड़ा बात से ।
नहीं सुलझा , सड़क पर उसको सुलझना चाहिये ।।

 

तुम्हारी कुर्सी को नारों से उठाये हम रहे ।
तजुर्मा नारों का कामों में बदलना चाहिये ।।

 

ऊँट पर बैठे हो तुम, हाथी नहीं सीधा चले ।
जानता है ऊंट कब करबट बदलना चाहिये ।।

 

✍?

 

लेखक : डॉ.कौशल किशोर श्रीवास्तव

171 नोनिया करबल, छिन्दवाड़ा (म.प्र.)

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