चाहिये | Chahiye poetry
चाहिये
( Chahiye )
तेरे मेरे बीच की अब धुन्ध छटनी चाहिये ।
आग की दीवार दरिया में बदलनी चाहिये ।।
जमाना कठपुतलियों का बहुत पीछे रह गया ।
उनको सीधे उंगलियों से ही उलझना चाहिये ।।
मेरी मेहनत तुम्हारी दौलत का झगड़ा बात से ।
नहीं सुलझा , सड़क पर उसको सुलझना चाहिये ।।
तुम्हारी कुर्सी को नारों से उठाये हम रहे ।
तजुर्मा नारों का कामों में बदलना चाहिये ।।
ऊँट पर बैठे हो तुम, हाथी नहीं सीधा चले ।
जानता है ऊंट कब करबट बदलना चाहिये ।।
लेखक : डॉ.कौशल किशोर श्रीवास्तव
171 नोनिया करबल, छिन्दवाड़ा (म.प्र.)