हाल देखा जो इन बहारों का
हाल देखा जो इन बहारों का

हाल देखा जो इन बहारों का

( Hal dekha jo in baharon ka ) 

 

हाल देखा जो इन बहारों का।
दिल तड़पने लगा गुलज़ारों का।।

 

गुल भी चुभने लगे हैं छूने से।
क्या कसूर फिर चमन में ख़ारों का।।

 

चांद भी कम नज़र में आता है।
आब घटने लगा सितारों का।।

 

नाखुदा बढ़ चला जो कश्ती से।
रूख बदलने लगा किनारों का।।

 

दिल बहलता नहीं दहलता है।
कैसा मंजर “कुमार” नज़ारों का।।

 

लेखक:  मुनीश कुमार “कुमार “

हिंदी लैक्चरर
रा.वरि.मा. विद्यालय, ढाठरथ

जींद (हरियाणा)

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