चीर को तुम | Cheer ko tum
” चीर को तुम “
( Cheer ko tum )
समझ पाते अविरल चक्षु नीर को तुम।
कब तक खींचोगे हमारे चीर को तुम।।
बहुत कुछ खोया तब पाया है तुम्हे,
भूखी रहकर भी खिलाया है तुम्हे।
आज मैं हर मोड़ पे मरने लगी हूं,
मेरे उदरज तुमसे ही डरने लगी हूं।
पानी भी समझें नहीं उस छीर को तुम।। कब तक०
हरित वन ने क्या बिगाड़ा है तुम्हारा
जीवन हो या मृत्यु लकड़ी है सहारा।
खाद विषमय डाल फसल उगाओगे,
उर्वरा घट जायेगी पछताओगे।
तोड़ दो मिथ्या अहं प्राचीर को तुम।। कब तक०
है प्रदूषण हर तरफ फैला हुआ,
बाहर उजला अन्दर मटमैला हुआ।
सदानीरा सूखने पर आ गयी है,
गांव की बस्ती सरोवर खा गयी है।
वक्ष पर अब मत चलाओ तीर को तुम।। कब तक०
आय कम सम्पत्ति गुरुतर होगयी है,
आत्मा उत्कोच में ही खो गयी है।
असुरक्षित भ्रूण दहेज भी विकट तो हैं,
शेष भेष बदल के सारे प्रकट तो हैं।
मत दिखाओ दीप दिनवीर को तुम।। कब तक०