चीख | Cheekh par kavita
चीख
( Cheekh )
चीरती नीले गगन को हृदय विदारक चीख सी है।
ले लिया सब कुछ हमारा देता हमको भीख सी है।।
छोड़कर घर द्वार तेरे पास आयी यहां मैं,
सगे सम्बन्धी सब छूटे अब बता जाऊं कहां मैं,
दो रोटी के बदले देता लम्बी लम्बी सीख सी है।।ले लिया ०
रात भर तूं चाहे घूमें दिन में मैं सहमी रही,
मेरी ही लज्जा लुटेगी तेरी तो है ही नहीं,
बातों से ही रस टपकाता काम सूखी ईख सी है।।ले लिया ०
गर्भ में ही मार देने को विवश करता है तूं,
पर कहीं तरुणी दिखे तो ग्रहण सा लगता है तूं,
तूं दिखे गोरा पर तेरी आत्मा कालीख सी है।।ले लिया ०
हम तेरे सहभागी हैं ये बात भी सोचा कभी,
जलाया लूटा घसीटा खरोंचा नोचा कभी,
ये वही चण्डी है शेष समझता तूं लीख सी है।।ले लिया ०