छत्रपति शिवाजी महाराज | Chhatrapati Shivaji Maharaj
छत्रपति शिवाजी महाराज!
( Chhatrapati Shivaji Maharaj )
जन्म हुआ सोलह सौ सत्ताईस में,
माँ जिसकी जीजाबाई थी ।
शिवनेरी के उस किले में,
खूब बजी बधाई थी ।
घर-घर दीपक जगमगा उठे,
रजनी भी हुलसायी थी ।
क्या नारी, क्या नर, क्या बच्चे,
शिवाई भी हर्षायी थी ।
झूम उठी थी धरती अपनी,
झूम उठा था यह आकाश ।
झूम उठी थी पर्वत मालाएँ,
झूम उठा था सूर्य-प्रकाश ।
दूब, पल्लव, फूल, कलियाँ,
नाची थी गुलशन की गलियाँ ।
चाँद – सितारे झूम रहे थे,
झूम रही थी नभ में परियाँ ।
अजब समां था खुशियाली का,
मावलों ने धूम मचाई थी ।
शिवाजी के जन्मदिन पर,
शहाजी बधाई भेजी थी ।
दिन बदला, बदली ऋृतुएँ,
और शिवा कुछ बड़ा हुआ ।
पराधीनता की बू से,
चेहरा उसका लाल हुआ ।
कुश्ती लड़ना, किला तोड़ना,
घोड़ा दौड़ाना आता था ।
तीर चलाना, भाला फेंकना,
शिवा को खुब भाता था ।
राम-कृष्ण की पावन गाथा,
शिवा को याद जुबानी थी ।
कोंणदेव की न्याय की बातें,
सपने में भी आती थीं ।
रायरेश्वर के पावन मंदिर में,
तब करने-मरने की ठानी ।
मावले बोले देख शिवा,
हम देंगे अपनी जवानी ।
मर जाएँगे, मिट जाएँगे,
हम अपना लहू बहाएँगे ।
मातृभूमि की खातिर हम,
अपना शीश कटाएँगे ।
देख मावलों को रोमांचित,
शिवा ने तब प्रण किया ।
हिन्दवी स्वराज्य बनकर रहेगा,
ऐसा उसने संकल्प लिया ।
बम-बम, हर-हर महादेव की,
मावलों ने जयकार किया ।
जय भवानी, जय अंबे से
शिवा ने आशीर्वाद लिया ।
शौर्य, वीरता से भरा हुआ,
मराठों का खूब घराना था ।
रणकौशल, अदम्य साहस,
जैसे उनका खजाना था ।
तोरण किले पर आक्रमण करके,
स्वराज्य का डंका बजा दिया ।
तानाजी मालुसरे ने उस पर
भगवा झंडा फहरा दिया ।
नगाड़ों और तुरहियों से,
सह्याद्रि घाटी गूँज गई ।
तोरणाजाई देवी की,
दुआएँ शिवा को मिल गई।
कुछ अर्से के बाद शिवा ने,
अफजल खाँ का खून किया ।
आदिलशाही झुककर तब,
शिवाजी से संधि किया ।
जात-पाँत से ऊपर उठकर,
शिवाजी की सेना थी ।
मुगलों की ताकत को वह,
तलवारों पर तौली थी ।
हिन्दू-मुस्लिम दोनों को
शिवा समान समझता था ।
दीन-धर्म के नाम पर,
भेद न मन में लाता था ।
महाशक्ति यह मुल्क बने,
वह सदियों पहले सोचा था ।
राह में रोड़ा बनने वालों को
तलवारों से रोका था ।
सन् सौलह सौ अस्सी में
यह भारत का सूरज डूब गया ।
असंभव को संभव करके,
क्रांति का बिगुल बजा गया ।
भारत का वह गौरव था,
भारत का वह वैभव था ।
हिन्दवी स्वराज्य का शिल्पकार,
वह तो जैसे भैरव था ।
आज देश फिर घिर रहा है,
चहुँ ओर एटमी-तूफानों से ।
करना होगा इसका शमन,
हरेक के अरमानों से ।
ऐसे विष के घूँट को हमको,
मिलकर पीना होगा ।
अक्षुण्ण रहेगी भारतमाता,
तब सुखमय जीवन होगा ।
आओ मिलकर आज शपथ लें,
कभी न टूटने देंगे देश ।
छत्रपति शिवाजी जैसा,
हम भी बचाएँ फिर यह देश ।।